Hindi Ghazal - Bachapan - Zindagi
बचपन में हम भी बहुत अमीर हुआ करते थे
इस बारिश में 2 - 3 जहाज़ हमारे भी चला करते थे !!
काग़ज़ के ही क्यों न सही
पर हवा में हमारे भी विमान उड़ा करते थे !!
मिट्टी - गारे का ही क्यों ना हो
हमारे भी महल क़िल्ले हुआ करते थे !!
लेकिन अब कँहा रही वो अमिरी,
अब कँहा रहा वो बचपन..
"हुनर" सड़कों पर तमाशा करता है
और "किस्मत" महलों में राज करती है...
शिकायते तो बहुत है तुझसे ऐ जिन्दगी,
पर चुप इसलिये हूँ कि
तुमने जो दिया वो भी बहुतों को नसीब नहीं होता
Hindi Ghazal - Bachapan - Zindagi
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