बुलंदी की उडान पर हो तो, जरा सब्र रखो ।
परिंदे बताते हैं कि, आसमान में ठिकाने नही होते ।।
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इन अश्कों को छुपाना जो नामुमकीन होता ।
तो हम कैसे कह देते के हमें दर्द नहीं होता ।।
बिखर जाते हैं दरिय-ए-ग़म के ज़रे ज़रे मे हम ।
बेशक हमारे टुटने का कोई शोर नहीं होता ।।
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